सूरजपुर। (भूपेंद्र राजवाड़े)। जंगल में बढ़ते इंसानों के दखल के बीच वन्य प्राणियों का उनके प्राकृतिक रहवास क्षेत्र वन में मौजूदगी का पता लगाने अब ड्रोन कैमरे की मदद ली जा रही है और ग्रामीणों को जंगल नहीं जाने की समझाइश भी दी जा रही है। हाल ही में चांदनी बिहारपुर क्षेत्र में वन्य किसी जंगली जानवर के द्वारा 11 बकरियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। जिससे ग्रामीणों ने बाघ के हमले की आशंका जताई थी, वहीं वन विभाग के विशेषज्ञों के द्वारा पंजे के निशान का परीक्षण करते हुए बाघ के बजाए लकड़बग्घे के हमले का दावा किया था। वहीं कुदरगढ़ क्षेत्र में पुनः इस तरह की घटना हुई तब बाघ की मौजूदगी की संभावना को बल मिला। चूंकि कुदरगढ़ क्षेत्र को बाघ विचरण क्षेत्र माना जाता है। यहां के जंगल में पूर्व दो बाघ विचरण कर रहे थे, जिसमें से एक बाघ को वन विभाग की टीम ने ट्रेंकुलाइज किया था जबकि दूसरा बाघ झारखंड की ओर चला गया था, कुछ माह बाद दूसरा बाघ पुनः कुदरगढ़ क्षेत्र में देखा गया था। इधर मंगलवार 12 नवंबर को वन मण्डल सूरजपुर के कुदरगढ़ परिक्षेत्र में विचरण कर रहे बाघ की ट्रेसिंग का प्रयास किया गया। संयुक्त वन मण्डलाधिकारी के नेतृत्व में वनपरिक्षेत्र अधिकारी कुदरगढ़, उनके परिक्षेत्र के अन्य कर्मचारियों, उड़नदस्ता सूरजपुर वन मण्डल तथा परिक्षेत्र अधिकारी बिहारपुर की उपस्थिति में 4 दल का गठन किया गया है। वन मण्डल अधिकारी सूरजपुर पंकज कमल व प्रभात दुबे वन्यप्राणी विशेषज्ञ द्वारा बाघ ट्रेकिंग हेतु आवश्यक जानकारियां दी। एण्टी स्नेअर वाक का प्रशिक्षण भी दिया गया। चारों दलों द्वारा कुछ दिनों पूर्व बाघ द्वारा मवेशियों के शिकार स्थल के आस- पास वनक्षेत्रों का भ्रमण कर बाघ के आने तथा जाने के मार्ग को ट्रेस करने का प्रयास किया जा रहा है। ड्रोन कैमरे की मदद भी ली जा रही है। ट्रेप कैमरा भी लगाया गया है। चरवाहों को सतर्क रहने कहा गया है। गांव से लगे जंगल में न जाने की मुनादी कराई जा रही है।
वन अमले के नाक के नीचे कट रहे जंगल, वन भूमि पट्टा भी मूल वजह
विदित हो कि वन भूमि पट्टा की चाह में वन अमले के नाक के नीचे जंगल की अंधाधुंध कटाई चल रही है। भू माफियाओं, कब्जा धारियों में होड मची हुई है। जबतक किसी के द्वारा शिकायत नहीं की जाती है तब तक जंगल के पहरेदार मूक दर्शक बने रहते हैं। यही कारण है कि प्राकृतिक रहवास उजड़ने से चिंताजनक ढंग से वनों में जैव विविधता में कमी आई है, जंगल से लगे बस्तियों में वन्य प्राणियों के भटकर आने पशुओं, इंसानों पर हमले की घटनाएं भी बढ़ी हैं। जागरूक लोगों के द्वारा शासन से अब वन भूमि पट्टा का प्रावधान बंद किए जाने और जंगल की निगरानी, सुरक्षा में फेल जिम्मेदारों को बर्खास्त किए जाने की मांग भी उठाई जा रही है।








