अंबिकापुर।। खबरी गुल्लक।। 17 सितंबर 2025।।
मैं हूँ रामगढ़ पर्वत, सरगुजा का प्रहरी, जहाँ हजारों वर्षों से राम, सीता और लक्ष्मण के चरणों की छाप बसी हुई है। मेरी गोद में वह सीता बेंगरा गुफा है, जहाँ आस्था की दीपशिखा जलती रहती है। मेरी चट्टानों ने कभी महाकवि कालिदास को "मेघदूतम्" की अमर रचना लिखते देखा है। मेरी सीढ़ियाँ, मेरे मंदिर, मेरी नाट्यशाला – सब सिर्फ पत्थर नहीं, बल्कि इतिहास और संस्कृति की जीवित गवाही हैं। लेकिन आज मैं घायल हूँ... खनन के लिए मेरे चारों ओर जंगलों की कटाई हो रही है। मेरी सांसें रोक देने वाली यह हरियाली, जो वर्षों से मेरे आंचल में पलती रही, अब धीरे-धीरे खत्म हो रही है। कोयले की भूख ने मेरे भीतर बारूद भर दिया है। हर ब्लास्टिंग के धमाके से मेरी चट्टानों में दरारें पड़ रही हैं, मेरे सीने पर घाव गहरे होते जा रहे हैं। नेता आते हैं – कभी कहते हैं कि मुझे कोई खतरा नहीं, तो कभी दावा करते हैं कि मेरा अस्तित्व खतरे में है। लेकिन सच तो यह है कि हर धमाका मुझे थोड़ा-थोड़ा तोड़ देता है। मैं कोई साधारण पहाड़ नहीं हूँ...! मैं राम का रामगढ़ हूँ... मैं वह स्थल हूँ जहाँ आस्था, संस्कृति और इतिहास एक साथ सांस लेते हैं... मेरी पुकार है – “मुझे बचा लो...! मुझसे मेरी हरियाली मत छीनो, मेरी चट्टानों को मत तोड़ो। अगर मैं बिखर गया, तो सिर्फ पत्थर नहीं टूटेंगे... बल्कि टूट जाएगी भारत की अनमोल धरोहर।” यह सिर्फ मेरी नहीं, बल्कि आस्था और संस्कृति की पीड़ा है।.... “मैं हूँ रामगढ़ पर्वत… मेरी चट्टानों की चीख सुनो!” मैं हूँ रामगढ़ पर्वत, सरगुजा की आत्मा और भारत की अनमोल धरोहर। सदियों से मैं आस्था, संस्कृति और इतिहास की रक्षा करता आया हूँ। मेरी चोटी पर राम, सीता और लक्ष्मण के मंदिर हैं। मेरी गोद में सीता बेंगरा गुफा है, जहाँ आज भी श्रद्धालु आस्था से माथा टेकते हैं। मेरी सीढ़ियाँ और चट्टानें उस प्राचीन नाट्यशाला की साक्षी हैं, जिसे पूरे देश में अद्वितीय माना जाता है। और हाँ, मैंने ही अपनी छाँव में कालिदास को "मेघदूतम्" लिखते देखा है। मैं सिर्फ पत्थरों का ढेर नहीं हूँ – मैं जीवित संस्कृति हूँ, जीवित इतिहास हूँ...! लेकिन आज मैं टूट रहा हूँ… हर धमाके से दरकती मेरी आत्मा मेरे आसपास खनन के नाम पर जंगलों की कटाई की जा रही है। मेरी हरी चादर, जो युगों से मेरी शोभा रही है, उसे आरी और मशीनें नोच रही हैं। और अब, कोयले के लिए की जा रही ब्लास्टिंग ने मेरी नींव हिला दी है। हर धमाके के साथ मेरी चट्टानों में नई दरारें पड़ती हैं, मेरी सीढ़ियाँ टूटती हैं, मेरे मंदिर कांप उठते हैं। नेताओं के दावों में दब गई मेरी पुकार.., कभी कांग्रेस की समिति आती है और कहती है कि मैं खतरे में हूँ। कभी भाजपा की टीम निरीक्षण कर जाती है और दावा करती है कि मुझे कोई खतरा नहीं। लेकिन कोई पूछे – जब बारूद की गूँज मेरी गुफाओं तक पहुँचती है, जब मेरी छाती फटती है, तो क्या यह खतरा नहीं? मेरा दर्द सिर्फ मेरा नहीं – देश का है, मैं कोई साधारण पर्वत नहीं हूँ। मैं राम का रामगढ़ हूँ। मैंने आस्था को संजोया है, मैंने संस्कृति को बचाया है। मैं ही वह जगह हूँ जहाँ श्रद्धा और इतिहास एक साथ सांस लेते हैं। अगर मैं बिखर गया, तो सिर्फ चट्टानें नहीं टूटेंगी… बल्कि टूट जाएगा हमारे देश का अमूल्य सांस्कृतिक खजाना। "मेरी रक्षा करो...! मुझे जंगलों से वंचित मत करो, मेरी चट्टानों को मत तोड़ो। अगर मेरी दरारें गहरी हो गईं तो आने वाली पीढ़ियाँ मुझसे जुड़ी धरोहरों को सिर्फ किताबों और तस्वीरों में ही ढूँढेंगी। मैं चाहता हूँ कि आने वाले बच्चे भी यहाँ आकर राम की याद करें, सीता बेंगरा की गुफा देखें और कालिदास की गूँज महसूस करें। मुझे बचा लो – क्योंकि मुझे बचाना, भारत की आत्मा को बचाना है।...
✍️विकास बारी.... (संचालक - खबरी गुल्लक)
( समाचार अथवा विज्ञापन के लिए संपर्क करें9926849074)






