अंबिकापुर के हरकेवल छठ घाट पर उमड़ पड़ा आस्था का सैलाब, उगते सूर्य को अर्घ्य दे 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत का हुआ समापन, छठ गीतों से गूंज उठा शहर

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अंबिकापुर के हरकेवल छठ घाट पर उमड़ पड़ा आस्था का सैलाब, उगते सूर्य को अर्घ्य दे 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत का हुआ समापन, छठ गीतों से गूंज उठा शहर

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अंबिकापुर।। खबरी गुल्लक।। 

संभाग मुख्यालय अंबिकापुर  में आध्यात्मिक आस्था और भक्ति से ओतप्रोत छठ पर्व का आयोजन इस वर्ष भी श्रद्धा और उल्लास के साथ सम्पन्न हुआ। माता राजमोहनी देवी वार्ड क्र. 12 स्थित संत हरकेवल छठ घाट पर सोमवार और मंगलवार दोनों दिन का माहौल पूरी तरह धार्मिक भावना से भरा रहा। लोक परंपरा और सूर्योपासना के इस महापर्व में व्रतियों ने 36 घंटे तक निर्जला उपवास रखकर अस्ताचल और उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। इस विधि से सूर्य भगवान के प्रति आस्था और कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्होंने लोक मंगल की कामना की।  आज मंगलवार को उगते सूर्य को अर्घ्य दे हवन पूर्णाहुति के साथ 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत का समापन किया। वरिष्ठ पार्षद मनोज कुमार गुप्ता के नेतृत्व में इस बात भी छठ घाट की साफ सफाई कराने के साथ ही लाइटिंग, पंडाल के साथ विशेष साज सज्जा की गई थी। श्रद्धालुओं ने बेहतर व्यवस्था, सहयोग के लिए पार्षद मनोज कुमार गुप्ता के प्रति आभार व्यक्त किया। आज मंगलवार को तड़के 3 - 4 बजे से ही छठ घाट में श्रद्धालुओं के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया था, जबकि कई छठ वृति सोमवार को अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घाट में ही रुके और आज उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। संत हरकेवक छठ घाट में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।

छठ पर्व को लोक आस्था का पर्व कहा जाता है। यह केवल सूर्य उपासना नहीं, बल्कि प्रकृति, परिवार और समाज के संतुलन का प्रतीक भी माना जाता है। अंबिकापुर के संत हरकेवल घाट पर  सोमवार को जब अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने का समय आया, तो पूरा घाट  छठ गीतों से गूंज उठा। व्रतियों ने सुसज्जित सूप में ठेकुआ, फल, नारियल आदि से अर्घ्य अर्पित किया। महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में सजकर जल में खड़े होकर सूर्य देव को नमन किया। घाट पर उपस्थित श्रद्धालुओं की भावनाएं भक्ति की लहरों में डूबी रहीं।

रात भर घाट पर श्रद्धालुओं की भीड़ बनी रही। कई व्रती महिलाएं और उनके परिवार अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य देने के बाद घाट पर ही रुके और पूरी रात भक्ति भरे माहौल में भजन-कीर्तन करते रहे। मंगलवार की भोर में जब पूर्व दिशा से सूर्य की पहली किरण दिखाई दी, तब श्रद्धालु हाथों में सूप, दीप और नारियल लिए तैयार खड़े थे। सूर्योदय के साथ ही घाट पर जय सूर्य भगवान, जय छठी मइया के जयकारे गूंज उठे। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर भक्तों ने अपने व्रत का विधिवत समापन किया।

छठ का यह अनुष्ठान 36 घंटे का निर्जला व्रत होता है, जिसमें जल तक का सेवन नहीं किया जाता। इसे संयम, शुद्धता और आत्मबल का पर्व कहा जाता है। व्रति महिलाएं पूरे वर्ष इस दिन के लिए मन, शरीर और घर की पूर्ण शुद्धि का ध्यान रखती हैं। यह न केवल आत्मिक अनुशासन का प्रतीक है, बल्कि पारिवारिक एकता और सामाजिक सहयोग का भी संदेश देता है। अंबिकापुर का संत हरकेवल घाट छठ पर्व के दौरान सामूहिक संगठित आस्था का केंद्र बन गया। यहां हर उम्र, वर्ग और समुदाय के लोग एक साथ उपस्थित दिखे। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इस पावन अवसर का हिस्सा बने।छठ मैया की भक्ति गीतों की गूंज ने वातावरण को अलौकिक बना दिया। छठ पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, अपितु भारतीय संस्कृति के सामूहिक जीवन का जीवंत प्रतीक भी बन गई है। यह पर्व दिखाता है कि जब समाज एकसाथ श्रद्धा से जुड़ता है, तो हर कठिनाई सरल बन जाती है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश में छठ पर्व की तैयारी कई दिन पूर्व से शुरू हो जाती है। अंबिकापुर में भी अब छठ पर्व  भक्ति और समर्पण की जीवंत गाथा बन गई है।

पार्षद मनोज गुप्ता की पहल पर सजा घाट, व्रतियों ने जताया आभार 

इस वर्ष शहर के संत हरकेवक छठ घाट में  वरिष्ठ पार्षद मनोज कुमार गुप्ता के नेतृत्व में घाट की बेहतर व्यवस्था की गई थी। उन्होंने सवेरा होने से पहले तक स्वयं सभी तैयारियों का जायजा लिया। घाट परिसर की साफ-सफाई, लाइटिंग की व्यवस्था, पंडाल सजावट और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष प्रयास किए गए। नगर निगम की टीम ने तत्परता से सभी आवश्यक व्यवस्थाओं को संभाला। व्रतियों और श्रद्धालुओं ने उनकी इस निष्ठा और सेवा भावना के लिए हृदय से आभार व्यक्त किया। छठ घाट पर उपस्थित जनसमूह ने यह अनुभव किया कि भक्ति केवल पूजा का माध्यम नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शन है। यह पर्व व्यक्ति को विनम्रता, त्याग और कृतज्ञता का संदेश देता है। सूर्योपासना के माध्यम से मनुष्य सूर्य की ऊर्जा, प्रकाश और जीवनदायी शक्ति से जुड़ता है। यह जोड़ केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आत्मिक है। जब व्रति निर्जला व्रत रखकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो यह उनके आत्म बल का प्रतीक बन जाता है ।  शरीर की सीमाओं से ऊपर उठकर आत्मा की शुद्धि का क्षण।


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