नई दिल्ली।।खबरी गुल्लक ।।
दिल्ली की एक अदालत ने एक महिला की वह याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उसने पति से अंतरिम आर्थिक गुजारा भत्ता (भरण-पोषण) मांगा था। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि वैवाहिक विवादों में अक्सर महिलाओं द्वारा अपनी जरूरतों को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और पुरुष अपनी आय को कम करके पेश करते हैं। यह फैसला मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पूजा यादव ने 25 अक्टूबर 2025 को सुनाया। मामला घरेलू हिंसा से महिला का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत दायर याचिका से जुड़ा था।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता विधि स्नातक हैं और अक्टूबर 2024 तक दिल्ली महिला आयोग में कार्यरत थीं। न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि महिला ने कोई ऐसा प्रमाण रिकॉर्ड पर नहीं दिया जिससे यह सिद्ध हो कि वे वर्तमान में काम करने में असमर्थ हैं या नौकरी हासिल करने में कोई वास्तविक बाधा है। अदालत ने कहा कि शादी से कोई बच्चा नहीं है और ऐसी कोई घरेलू जिम्मेदारी नहीं है, जो उन्हें काम करने से रोके। इसलिए अदालत को यह मानने का कोई ठोस कारण नहीं दिखा कि महिला बेरोजगार हैं, या उन्हें स्वयं अपना भरण-पोषण करने में कठिनाई है।
दोनों पक्षों में अतिशयोक्ति की प्रवृत्ति
मजिस्ट्रेट पूजा यादव ने अपने आदेश में यह उल्लेख किया कि न्यायालयों ने कई बार यह पाया है कि वैवाहिक विवादों में दोनों पक्ष अपने-अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं। उन्होंने कहा, ऐसे मामलों में पत्नी द्वारा अपने खर्चों को बढ़ा-चढ़ाकर बताना और पति द्वारा अपनी आय की वास्तविकता को छिपाना आम प्रवृत्ति है। इन आधारों पर अदालत ने महिला की अंतरिम गुजारा भत्ता मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही कहा कि महिला सक्षम हैं और अपने योग्यतानुसार स्वयं रोजगार प्राप्त कर सकती हैं। यह फैसला उन मामलों के लिए मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जिनमें दोनों पक्ष अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर विरोधाभासी दावे करते हैं।






