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अपहरण, दुष्कर्म और निर्मम हत्या के दोषी को फांसी की सजा ... तीन वर्ष पूर्व हुई थी वारदात

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अंबिकापुर/ जांजगीर-चांपा।।  खबरी गुल्लक।।

जांजगीर चांपा जिले में हुए एक  सनसनीखेज अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के प्रकरण में  न्यायालय ने दोषी को फांसी की सजा सुनाई है। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला अत्यंत जघन्य, क्रूर और मानवता को झकझोर देने वाला है, जिसमें पहले दी गई आजीवन कारावास की सजा अपराध की गंभीरता के अनुपात में अपर्याप्त है। विशेष लोक अभियोजक धीरज शुक्ला ने प्रकरण की जानकारी देते हुए मीडिया को बताया कि पीड़िता बेमेतरा जिले में भृत्य  के पद पर कार्यरत थी। वह छुट्टी लेकर 9 अगस्त 2022 को अपने गृह ग्राम आई थी। 14 अगस्त 2022 की सुबह करीब 9 बजे वह अपनी स्कूटी (एक्टिवा) से बेमेतरा के लिए रवाना हुई। सुबह लगभग 11 बजे के बाद से उसका मोबाइल फोन स्विच ऑफ आने लगा और रात तक उसके बेमेतरा नहीं पहुंचने पर परिजनों को अनहोनी की आशंका हुई।

पीड़िता के लापता होने की सूचना पर थाना डभरा में गुम इंसान दर्ज कर पुलिस ने उसकी पतासाजी शुरू की। जांच के दौरान संदेह के आधार पर शंकर निषाद से पूछताछ की गई। पूछताछ में उसने मेमोरण्डम कथन में स्वीकार किया कि वह पीड़िता से पहले से बातचीत करता था। उसने बाढ़ के कारण रास्ता बंद होने का बहाना बनाकर पीड़िता को यह कहकर धोखे में रखा कि वह उसे बेमेतरा जाने का वैकल्पिक रास्ता बताएगा। इसी बहाने उसने पीड़िता को भदरी चौक फगुरम बुलाया।

दोषी के अनुसार इसके बाद वह अपनी मोटरसाइकिल से और पीड़िता अपनी स्कूटी से भदरी चौक फगुरम से खरसिया रेलवे स्टेशन पहुंचे। उसने अपनी मोटरसाइकिल रेलवे स्टेशन परिसर में खड़ी की और पीड़िता को उसकी ही स्कूटी में बैठाकर पलगड़ा जंगल ले गया। सुनसान जंगल में  पीड़िता के हाथ स्कार्फ से बांधकर जबरन उसके साथ दुष्कर्म किया। इसके बाद उसने पीड़िता का गला दबाकर तथा ब्लेड से उसकी कलाईयों की नसें काटकर निर्मम हत्या कर दी।

पुलिस जांच में आरोपी के मेमोरण्डम कथन, परिस्थितिजन्य साक्ष्य और अन्य प्रमाण न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए। सुनवाई के दौरान न्यायालय ने माना कि यह अपराध पूर्व नियोजित, नृशंस और अत्यधिक क्रूरता के साथ किया गया है। पीड़िता के साथ विश्वासघात कर उसे धोखे से जंगल ले जाना, दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या करना समाज के लिए गंभीर खतरे को दर्शाता है। इन सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए  विद्वान न्यायाधीश ने दोषी को दी गई आजीवन कारावास की सजा को अपर्याप्त बताते हुए उसे मृत्युदंड (फांसी) की सजा सुनाई। 

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