सरगुजा जिले के प्रमुख पर्यटन स्थल और आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र मैनपाट के कंडराजा में प्रस्तावित बॉक्साइट खदान विस्तार को लेकर आयोजित जनसुनवाई सोमवार को ग्रामीणों के तीखे विरोध के बीच संपन्न हुई। जनसुनवाई में सैकड़ों की संख्या में ग्रामीण इकठ्ठा हुए और सामूहिक रूप से खनन विस्तार का विरोध दर्ज कराया। ग्रामीणों ने साफ कहा कि पिछले कई दशकों से चल रहे बक्साइड दोहन ने मैनपाट के विशाल हिस्से को पहले ही बर्बाद कर दिया है। पहाड़ों का कटाव, गहरी खाइयों का निर्माण, जलस्रोतों का सूखना और जंगलों के खत्म होने जैसी समस्याओं से क्षेत्र पहले ही जूझ रहा है। ऐसे में अब पुनः खदान विस्तार की अनुमति देना क्षेत्र के अस्तित्व पर ही खतरा है।
ग्रामीणों ने जनसुनवाई के दौरान अधिकारियों को बताया कि मैनपाट का करीब 80 फीसदी क्षेत्र पहले ही खनन कार्यों के कारण उजड़ चुका है। उन्होंने कहा कि शुरुआती वर्षों में कंपनियों ने जो आश्वासन दिए थे जैसे पुनर्वास, रोजगार, पर्यावरण संरक्षण और खदान भराई उनमें से अधिकांश का पालन नहीं हुआ। खदानों के गहरे गड्ढे आज भी खुले पड़े हैं, जो बरसों से दुर्घटनाओं का कारण बन रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं। ग्रामीणों ने कहा कि इन हालातों को देखते हुए अब और विस्तार की अनुमति देना स्थानीय जनजीवन के साथ कुठाराघात होगा।
मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है और यह क्षेत्र न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता और अनुकूल जलवायु के लिए जाना जाता है, बल्कि यहाँ सदियों से रहने वाले जनजातीय समुदायों के पारंपरिक जीवन, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का मूल आधार इसका जल जंगल जमीन है। जनसुनवाई में ग्रामीणों ने जोर देते हुए कहा कि यह पूरा क्षेत्र अनुसूचित क्षेत्र के रूप में संरक्षित है। इसलिए स्थानीय लोगों की सहमति के बिना किसी भी बड़े औद्योगिक या खनन परियोजना का विस्तार संवैधानिक रूप से भी उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि बार-बार विरोध के बावजूद कंपनियाँ और प्रशासन बिना स्थानीय हितों को समझे केवल खनिज दोहन पर जोर दे रहा है।
ग्रामीणों ने जनसुनवाई के मंच से कहा हमारी जमीन ही हमारी पहचान है। यह जंगल, यह पहाड़, यही हमारी आजीविका है। खनन से हमें न तो स्थायी रोजगार मिला और न ही विकास। उल्टा, हमारे खेत और जलस्रोत खत्म होने लगे हैं। अब हम और नुकसान नहीं सहेंगे। ग्रामीणों का यह भी कहना था कि पहले से संचालित खदानों में हुए पर्यावरणीय नुकसान की जांच किए बिना नई मंजूरी देना गलत होगा।
दूसरी ओर, प्रशासन की ओर से जनसुनवाई को शांतिपूर्वक संपन्न कराने और ग्रामीणों को परियोजना के संभावित लाभ बताने का प्रयास किया गया, परंतु अधिकांश ग्रामीणों ने प्रशासन की बातों से असहमति जताई। अधिकारियों ने ग्रामीणों को रोजगार, सड़क निर्माण, सामुदायिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के दायित्वों के बारे में समझाने की कोशिश की, लेकिन ग्रामीणों ने साफ कहा कि पिछली कंपनियों और परियोजनाओं के अनुभव इतने खराब रहे हैं कि अब किसी भी वादे पर विश्वास करना मुश्किल है।
ग्रामीणों ने यह भी आरोप लगाया कि खदान संचालन और विस्तार को लेकर कई बार अनुबंध की शर्तों का उल्लंघन किया गया है। कंपनियों ने समय-समय पर किए गए समझौतों के अनुसार ना तो खदान बंद होने के बाद भराई की, ना ही प्रभावित परिवारों को अपेक्षित मुआवजा मिला। कई किसानों के खेतों में आज भी लाल मुरमी और खनिज अपशिष्ट के कारण खेती संभव नहीं है। इसके अलावा कई ग्रामीणों ने बताया कि खदानों के कारण मैनपाट में कई स्थानों पर जलस्रोत सूख चुके हैं, जिससे सिंचाई और पेयजल संकट गहराया है।
जनसुनवाई के दौरान यह भी आरोप लगाया गया कि अब प्रस्तावित विस्तार के साथ-साथ एल्यूमीनियम प्लांट स्थापना की तैयारी भी चल रही है, जो क्षेत्र के पर्यावरण को और अधिक प्रभावित करेगा। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन और कंपनी ने उनकी आपत्तियों को नजरअंदाज कर खदान विस्तार या एल्यूमीनियम प्लांट की स्थापना का प्रयास किया तो इसे लेकर वे शांतिपूर्ण लेकिन पुरजोर आंदोलन करेंगे।
ग्रामीणों के प्रतिनिधियों ने कहा हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन विकास ऐसा हो जो हमारी जमीन को न छीनें, हमारे पानी को न सुखाए और हमारे भविष्य को न उजाड़े। अब बहुत हो चुका, मैनपाट को बचाना जरूरी है।
इस दौरान कई सामाजिक संगठनों, महिला समूहों और युवाओं ने भी विस्तार का विरोध करते हुए ज्ञापन सौंपा। उन्होंने मैनपाट के पर्यावरणीय महत्व, पर्यटन संभावनाओं और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण की बात रखते हुए कहा कि खनन विस्तार इसके बिल्कुल विपरीत कदम है।
जनसुनवाई में अधिकारियों ने ग्रामीणों की आपत्तियों और सुझावों को रिकॉर्ड में शामिल करने का आश्वासन दिया। अब आगे राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और संबंधित विभागों द्वारा इन तथ्यों का विश्लेषण कर आगे की कार्यवाही तय की जाएगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि प्रशासन स्थानीय लोगों की भावनाओं और पर्यावरणीय चिंताओं को प्राथमिकता देता है या खनन विस्तार के प्रस्ताव को आगे बढ़ाता है।
मैनपाट वासियों के लिए यह संघर्ष केवल रोजगार और विकास का मुद्दा नहीं, बल्कि उनकी पहचान, पर्यावरण, संस्कृति और भविष्य का सवाल बन चुका है। ग्रामीणों की एकजुटता और उनकी स्पष्ट आपत्ति ने यह संदेश दे दिया है कि मैनपाट की धरती को बचाने की लड़ाई आने वाले दिनों में और तेज होगा।




