अंबिकापुर/ बलरामपुर ।। 17 दिसंबर 2025:
जिला बलरामपुर-रामानुजगंज के अपर कलेक्टर राजपुर शंकरगढ़ कुसमी ने ग्राम मानपुर में स्थित विवादित गोचर भूमि खसरा नंबर 228/5 (रकबा 0.372 हेक्टेयर, लगभग 1 एकड़) पर बड़ा फैसला सुनाया है। दिनांक 12 दिसंबर 2025 को पारित आदेश में अनावेदक महेश्वर पैकरा (पिता: श्यामदेव पैकरा, उम्र 66 वर्ष, निवासी: ग्राम दोहना, तहसील शंकरगढ़) के नाम पर दर्ज फर्जी पट्टा निरस्त कर दिया गया है। भूमि को मूल गोचर/शासकीय मद में बहाल करने का निर्देश जारी किया गया, साथ ही तहसीलदार को राजस्व अभिलेख सुधारने और बी-01 की सत्यापित प्रति संलग्न करने को कहा गया।प्रकरण का संक्षिप्त विवरणयह मामला आवेदक ओमप्रकाश राम (पिता: स्व. बमडा राम, उम्र 46 वर्ष, जाति: कवर, निवासी: ग्राम मानपुर) द्वारा भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 50 के तहत दायर पुनरीक्षण आवेदन से शुरू हुआ। आवेदक ने आरोप लगाया कि अनावेदक ने राजस्व अधिकारियों से सांठगांठ कर शासकीय दस्तावेजों में हेराफेरी की, बिना किसी योजना के पात्रता के फर्जी पट्टा बनवाया और भूमि पर अवैध अहाता बनाकर कब्जा जमा लिया।आवेदक पक्ष के मुख्य तर्क:यह भूमि सरगुजा सेटलमेंट (1944-45) में गोचर मद की दर्ज है। आवेदक के पिता स्व. बमडा राम पूर्वजों काल से आधे हिस्से पर काश्त करते रहे, लेकिन पटवारी ने गोचर होने का हवाला देकर नाम दर्ज नहीं किया। 10 मई 2012 का दावा 23 फरवरी 2019 को गोचर बताकर खारिज हुआ, जो अब उपखंड स्तरीय समिति में लंबित।ग्रामीण कर्मा पूजा, ग्रामदेव पूजा और पशु चारागाह के लिए उपयोग करते थे।अनावेदक (दोहना निवासी) ने जबरन अहाता बनाया, मकान निर्माण शुरू किया, आवेदक परिवार को धमकियां दीं और रास्ता बंद कर दिया। RTI से पता चला: आयुक्त आदिवासी विकास ने कोई पट्टा जारी न होने की पुष्टि की; तहसील में कोई रिकॉर्ड नहीं।अनावेदक पक्ष के तर्क:भूमि पट्टे से प्राप्त है। नामांतरण पंजी (1990-91, क्रमांक 7) और किसान किताब पेश की, लेकिन पट्टे की मूल प्रति या कोर्ट केस का उल्लेख नहीं। अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) शंकरगढ़ के प्रतिवेदन में कब्जा स्वीकार, लेकिन कोई ठोस दस्तावेज नहीं। प्रकरण ई-कोर्ट में ऑनलाइन पंजीकृत था और अनुविभागीय अधिकारी के माध्यम से अपर कलेक्टर को हस्तांतरित हुआ। अनावेदक को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया, लेकिन मौखिक तर्क ही सुने गए।
अपर कलेक्टर का अभिमत और निष्कर्ष
अपर कलेक्टर ने विस्तृत जांच के बाद निष्कर्ष निकाला:भूमि मूल रूप से गोचर है, अनावेदक ने पट्टा साबित करने हेतु कोई वैध दस्तावेज (पट्टा प्रति) नहीं दिया।नामांतरण पंजी में कोर्ट प्रकरण का विवरण अनुपस्थित, जो संदिग्ध बनाता है।लंबे विवाद के बावजूद कब्जा होने से फर्जी पट्टे की आशंका पुष्ट हुई। न्यायालय ने आदेश दिया कि अनावेदक महेश्वर पैकरा का नाम राजस्व अभिलेख से विलोपित कर भूमि को शासकीय गोचर मद में दर्ज करें। तहसीलदार अभिलेख सुधारें। आवेदक ने अनावेदक की चल-अचल संपत्ति की जांच, बेदखली, अपराधिक मुकदमा और राजनीतिक प्रभाव की जांच की मांग की थी। आदेश पट्टा निरस्ती तक सीमित है, लेकिन ग्रामीणों में इसे गोचर भूमि संरक्षण की जीत माना जा रहा है। पूर्व शिकायतें (कलेक्टर को 14.08.2020, 02.07.2021; कमिश्नर को 02.07.2021) पर अब कार्रवाई की उम्मीद।यह फैसला छत्तीसगढ़ में शासकीय भूमि हड़पने के खिलाफ सख्ती का उदाहरण है। स्थानीय ग्रामीणों ने इसे स्वागतयोग्य बताया, जबकि अनावेदक पक्ष अपील की संभावना जता रहा है।





